
मैंने मई 1990 में यहाँ काम शुरू किया था, और ये 32 साल ऐसे बीते जैसे मैं अपने ही घर में था। कभी किसी से बात करने में हिचक नहीं हुई—हर कोई अपनापन देता था, और हमारे एमडी साहब भी हमेशा खुलेपन से बात करने को कहते थे। इस सफर में कई संघर्ष आए, लेकिन मैंने अपना सर्वश्रेष्ठ देने की कोशिश की, और मुझे ‘सर्वश्रेष्ठ कार्यकर्ता’ का सम्मान भी मिला—जिसे मैंने गर्व से अपने घर में फ्रेम कर रखा है।
अब जब मैं सेवानिवृत्त हो रहा हूँ, तो थोड़ा समय अपने लिए और परिवार के साथ बिताऊँगा, फिर कुछ नया करने की सोचूँगा ताकि हाथ और दिमाग दोनों चलते रहें। खाली बैठना मेरी आदत नहीं रही है। पैका ने हमेशा मेरे साथ एक साथी की तरह हर उतार-चढ़ाव में साथ दिया। इसने मुझे सिर्फ रोज़गार नहीं, पहचान, रिश्ते और अनगिनत यादें दीं। इस जगह ने मेरी ज़िंदगी को गढ़ा है और मुझे वो बनाया है जो मैं आज हूँ। भले ही मैं अब यहाँ की रोज़मर्रा की दिनचर्या से अलग हो रहा हूँ, लेकिन पैका से मेरा जुड़ाव हमेशा बना रहेगा। मैं दरवाज़े से बाहर ज़रूर जा रहा हूँ, लेकिन दिल से कभी दूर नहीं हो पाऊँगा।