
मैंने पैका में काम 1989 में शुरू किया था, जब मेरी उम्र सिर्फ 17 साल थी। उस समय मेरे लिए पैका सिर्फ एक काम की जगह थी, लेकिन धीरे-धीरे ये मेरा दूसरा घर बन गया।
इन 35 सालों में बहुत कुछ बदला, लेकिन एक चीज़ नहीं बदली — मेरा लगाव। मैंने कभी नहीं सोचा था कि ये सफर इतना लंबा होगा, लेकिन हर दिन कुछ सिखाता गया। अब जब मैं रिटायर हो रहा हूँ, तो ऐसा लग रहा है जैसे अपने ही घर से विदा ले रहा हूँ।
पैका से मिला सम्मान, दोस्ती और आत्मीयता मैं कभी नहीं भूल सकता। यही मेरा सबसे बड़ा इनाम है।