दीवाली के बीते पल

Amandeep Rawani (MSS)

अक्टूबर, 2025 |

एक फोन कॉल ने बदल दी मेरी पूरी दिवाली!

मैं दिवाली पर घर कभी नहीं जाता। अजीब है न? पर यही मेरी बात है, जहां हूं वहीं मना लेता हूं। अयोध्या में मुझे 2 साल से ज़्यादा हो गए हैं, और यहां की दोनों दिवाली अविस्मरणीय रही हैं।
2023 की मेरी पहली दिवाली? शुद्ध जादू! राम जन्मभूमि, राम की पैड़ी, हज़ारों दीयों की रोशनी से जगमगाती रात, VIP पास के बिना भी, वो अब तक की सबसे बेहतरीन दिवाली थी।
लेकिन 2024? अरे वाह, वो तो बिल्कुल अलग कहानी थी।
इस बार मेरा पूरा परिवार अयोध्या आ रहा था। हम आमतौर पर सब बिखरे रहते हैं, पापा हमेशा काम के सिलसिले में यात्रा पर रहते हैं, सब अलग-अलग शहरों में हैं। पर इस दिवाली? सब मेरे साथ जश्न मनाने आ रहे थे। मैं तो एकदम उत्साहित था!

प्लान सीधा-सादा था – सुबह काम खत्म करो, शाम को गुप्तार घाट पर परिवार से मिलो, दीये जलाओ, पटाखे फोड़ो, मस्ती करो। आसान है न?

ग़लत।

काम देर से खत्म हुआ। फिर, पहला ट्विस्ट, कोई गाड़ी उपलब्ध नहीं। अरे दिवाली जो है! आधे ड्राइवर छुट्टी पर थे, बाकी आधे कंपनी की पूजा में व्यस्त थे। मैं और मेरा दोस्त अमित फंस गए, बेताबी से सवारी ढूंढ रहे थे। आखिरकार किसी ने हमें देवकाली तक छोड़ दिया।
हम घाट के लिए आधे रास्ते में थे कि मेरा फोन बजा।
“PM-1 वायर खराब हो गई है। तुरंत वापस आओ।”

क्या?!, क्या?!!!

मेरा परिवार घाट पर पहुंच चुका था। दीये तैयार। पटाखे तैयार। वो मेरा इंतज़ार कर रहे थे। और यहां मुझे कहा जा रहा था कि वापस मुड़ो और फैक्ट्री चले जाओ?
मैंने पापा को फोन किया। “पापा, मैं… मैं नहीं आ पाऊंगा। काम पर इमरजेंसी है।”
ख़ामोशी। फिर, “कोई बात नहीं बेटा। काम पहले। कल मना लेंगे।”
न गुस्सा। न निराशा। बस… समझदारी। ये दिल को छू गया। दूसरा ट्विस्ट? मेरे पास फैक्ट्री वापस जाने का कोई साधन नहीं था! वही गाड़ी की समस्या। मैंने कंपनी को फोन किया, और शुक्र है, उन्होंने मुझे लेने के लिए हाईराइडर भेज दी।

जब तक मैं पहुंचा, रात हो चुकी थी। टीम इंतज़ार कर रही थी। हम सीधे वायर रिप्लेसमेंट में लग गए, रोल्स, एलाइनमेंट, सब कुछ। घंटे बीत गए। फैक्ट्री फ्लोर उस रात हमारी दिवाली सेलिब्रेशन की जगह बन गई थी। आखिरकार, रात 2 बजे हमने काम खत्म किया। मैं थका-हारा अपने कमरे पहुंचा, लेकिन किसी तरह… संतुष्ट भी था?

अब वो ट्विस्ट जो आपने नहीं सोचा होगा – अगली शाम हमने गुप्तार घाट पर दिवाली मनाई। परिवार साथ। दीयों की रोशनी। पापा मुस्कुराते हुए, “देर आए दुरुस्त आए!” उन्होंने कहा। और तभी समझ आया, दिवाली कैलेंडर की तारीख़ के बारे में नहीं है। ये दीयों या आतिशबाज़ी के बारे में भी नहीं है। ये उपस्थित होने के बारे में है। अपने काम के लिए। अपने परिवार के लिए। जो मायने रखता है उसके लिए।

मेरी 2024 की दिवाली दो दिनों में हुई, एक रात अपनी वर्क फैमिली के साथ रात 1 बजे वायर ठीक करते हुए, और एक शाम अपने असली परिवार के साथ नदी किनारे दीये जलाते हुए। दोनों दिवाली थीं। दोनों परफेक्ट थीं।

कभी-कभी सबसे अच्छे जश्न वही होते हैं जो प्लान के मुताबिक़ नहीं चलते।

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