

जब मैं पैका में आया, तब मेरी उम्र मात्र 18 वर्ष थी। आज, 60 वर्ष की आयु में, सेवानिवृत्ति के इस पड़ाव पर खड़ा होकर पीछे देखता हूँ, तो महसूस होता है कि यह यात्रा केवल नौकरी की नहीं थी, यह मेरी पूरी ज़िंदगी थी। मेरी जिज्ञासा ने ही मुझे नई राहें दिखाई और आगे बढ़ने की प्रेरणा दी।
पैका को खास बनाने वाली सिर्फ मशीनें या कार्य नहीं थे, इसकी असली पहचान बाबूजी थे। वे हमें पेड़ के नीचे बैठाकर पढ़ने के लिए प्रेरित करते, समय देते और आगे बढ़ने का आत्मविश्वास जगाते। उनका स्नेह और सम्मान इस जगह को कार्यस्थल नहीं, एक परिवार बनाता था। यह कारखाना हमेशा मेरा घर रहा, यहीं मैंने सीखा, आगे बढ़ा और दूसरों को सिखाया। अपने अनुभव और ज्ञान को आगे बढ़ा पाना मेरे लिए सबसे बड़ा संतोष रहा है।
अब जब मैं सेवानिवृत्ति की ओर बढ़ रहा हूँ, मन में कोई पछतावा नहीं है। मेरा एक हिस्सा हमेशा पैका से जुड़ा रहेगा। यह विदाई नहीं, बल्कि एक नए अध्याय की शुरुआत है, इस विश्वास के साथ कि यहाँ बना हमारा परिवार आगे भी यूँ ही फलता-फूलता रहेगा।
धन्यवाद पैका, 42 वर्षों की इज़्ज़त, सीख और अपनापन देने के लिए।